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अ॒ग्निश्च॑ म॒ऽआप॑श्च मे वी॒रुध॑श्च म॒ऽओष॑धयश्च मे कृष्टप॒च्याश्च॑ मेऽकृष्टप॒च्याश्च॑ मे ग्रा॒म्याश्च॑ मे प॒शव॑ऽआर॒ण्याश्च॑ मे वि॒त्तञ्च॑ मे॒ वित्ति॑श्च मे भू॒तञ्च॑ मे॒ भूति॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः। च॒। मे॒। आपः॑। च॒। मे॒। वी॒रुधः॑। च॒। मे॒। ओष॑धयः। च॒। मे॒। कृ॒ष्ट॒प॒च्याः इति॑ कृष्टऽप॒च्याः। च॒। मे॒। अ॒कृ॒ष्ट॒प॒च्या इत्य॑कृष्टऽप॒च्याः। च॒। मे॒। ग्रा॒म्याः। च॒। मे॒। प॒शवः॑। आ॒र॒ण्याः। च॒। मे॒। वि॒त्तम्। च॒। मे॒। वित्तिः॑। च॒। मे॒। भू॒तम्। च॒। मे॒। भूतिः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (अग्निः) अग्नि (च) और बिजुली आदि (मे) मेरे (आपः) जल (च) और जल में होनेवाले रत्न मोती आदि (मे) मेरे (वीरुधः) लता गुच्छा (च) और शाक आदि (मे) मेरी (ओषधयः) सोमलता आदि ओषधि (च) और फल-पुष्पादि (मे) मेरे (कृष्टपच्याः) खेतों में पकते हुए अन्न आदि (च) और उत्तम अन्न (मे) मेरे (अकृष्टपच्याः) जो जङ्गल में पकते हैं, वे अन्न (च) और जो पर्वत आदि स्थानों में पकने योग्य हैं, वे अन्न (मे) मेरे (ग्राम्याः) गाँव मे हुए गौ आदि (च) और नगर में ठहरे हुए तथा (मे) मेरे (आरण्याः) वन में होने हारे मृग आदि (च) और सिंह आदि (पशवः) पशु (मे) मेरा (वित्तम्) पाया हुआ पदार्थ (च) और सब धन (मे) मेरी (वित्तिः) प्राप्ति (च) और पाने योग्य (मे) मेरा (भूतम्) रूप (च) और नाना प्रकार का पदार्थ तथा (मे) मेरा (भूतिः) ऐश्वर्य (च) और उस का साधन ये सब पदार्थ (यज्ञेन) मेल करने योग्य शिल्प विद्या से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्नि आदि की विद्या से सङ्गति करने योग्य शिल्पविद्या रूप यज्ञ को सिद्ध करते हैं, वे ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अग्निः) वह्निः (च) विद्युदादिः (मे) (आपः) जलानि (च) जलरत्नानि (मे) (वीरुधः) गुल्मविशेषाः (च) तृणशाकादि (मे) (ओषधयः) यवसोमलताद्याः (च) सर्वौषधादि (मे) (कृष्टपच्याः) या कृष्टेषु क्षेत्रेषु पच्यन्ते ताः (च) उत्तमानि शस्यादीनि (मे) (अकृष्टपच्याः) या अकृष्टेषु जङ्गलादिषु पच्यन्ते ताः (च) पर्वतादिषु पक्तव्याः (मे) (ग्राम्याः) ग्रामे भवाः (च) नगरस्थाः (मे) (पशवः) गवाद्याः (आरण्याः) अरण्ये वने भवा मृगादयः (च) सिंहादयः (मे) (वित्तम्) लब्धम् (च) सर्वं धनम् (मे) (वित्तिः) प्राप्तिः (च) प्राप्तव्यम् (मे) (भूतम्) रूपम् (च) नानाविधम् (मे) (भूतिः) ऐश्वर्यम् (च) एतत्साधनम् (मे) (यज्ञेन) सङ्गतिकरणयोग्येन (कल्पन्ताम्) ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मेऽग्निश्च म आपश्च मे वीरुधश्च म ओषधयश्च मे कृष्टपच्याश्च मेऽकृष्टपच्याश्च मे ग्राम्याश्च म आरण्याश्च पशवो मे वित्तं च मे वित्तिश्च मे भूतं च मे भूतिश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः पावकादिविद्यया सङ्गन्तव्यं शिल्पयज्ञं साध्नुवन्ति, त ऐश्वर्यं लभन्ते ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे अग्नी इत्यादी विद्येने शिल्पविद्यारूपी यज्ञ सिद्ध करतात. ती ऐश्वर्य भोगतात.